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तीन तलाक़ (Triple Talaq) मुस्लिम समाज में तलाक़ का वह जरिया है जिसके अंतर्गत मुस्लिम पति आपने पत्नी से शादी तोड़ने के लिए केवल तीन बार “तलाक”, “तलाक”, “तलाक” बोलना या लिखना पड़ता है. इस प्रकार के तलाक़ क़ानूनी और सामाजिक रूप से स्थिर होते है।
Essay on Triple Talaq in Hindi |
चूंकि ज्यादातर मुस्लिम महिलाएँ अपने शौहर पर निर्भर होती है| अतः तलाक के बाद मुस्लिम महिलाएँ के सामने अचानक से बच्चो की जिम्मेदारी, आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता है.
दुनिया के अधिकतर इस्लामिक देशो में तीन तलाक की कुप्रथा को गैर क़ानूनी घोषित कर दिया गया है. लेकिन भारत में यह प्रथा सैकड़ो वर्षो से चलती आ रही थी |
इससे संबंधित एक मामला की सुनवाई करते हुए सर्वोच्य न्यायालय ने तत्काल इस पर रोक लगा दी और संसद को सुझाव दिया गया की इस पर ठोस कानून बनाया जाए | केंद्र सरकार ने कानून का प्रारूप तैयार किया | जिसके तहत तीन साल की सजा और गुजारा भता को शामिल किया गया |
तीन तलाक़ को रोकने के लिए भारतीय के लोकसभा ने इस विधेयक विद्धेयक को पारित कर दिया लेकिन राज्यसभा में इस विधेयक को अगले सत्र के लिए विचाराधीन रखा गया है |
तीन तलाक को कुछ लोग किसी खास समुदाय से जुड़ा हुआ मामला मानते है | सर्वोच्य न्यायलय के फैसले के पहले समुदाय के अधिकांश पुरुष वर्ग इसे समाप्त करना नहीं चाहते है |
वे इसे धर्म से जोड़कर देखते थे और देश की धर्मनिरपेक्षता का हवाला देकर इसका विरोध करते है | वे नहीं चाहते थे की महिलाओं को समानता का अधिकार मिले | वही सरकार की और से यह दलील दी गई कि यह भारतीय दण्ड सहित 398 ‘A’ के तहत अपराध है जो महिला के पति या अन्य संबंधियों के द्वारा किया जाता है | न्यायालय ने सरकार की दलील मानते हुए तीन तलाक को अमान्य कर दिया |
यह कोई धार्मिक मामला नहीं है | बल्कि सती प्रथा, दहेज़ प्रथा तथा बाल विवाह जैसी कुप्रथा है | इससे महिलाओं के अधिकार का हनन होता है तथा गरिमापूर्ण जीवन जीने से उन्हें रोका जाता है | पवित्र ग्रन्थ कुरान एक बार में तीन तलाक की इजाजत नहीं देता है | महिलाओं पर इतना बड़ा अत्याचार की अनुमति धर्मं संस्कृति या संविधान नहीं दे सकता | परिणामस्वरूप एक बार में किसी भी माध्यम से दिया गया तीन तलाक हमारे देश में गैर क़ानूनी है |
महिलाओं को ससक्त करने तथा समानता का अधिकार देने के उद्देश्य से तीन तलाक को समाप्त किया जाना बहुत जरुरी था और इस पर अतिशीघ्र कानून बनाना आवश्यक है |
सरकार को विपक्षी दलों से बातचीत करनी चाहिए उनके द्वारा दिये गये सकारात्मक संशोधन को मान लेना चाहिए | विरोधी दलों को इसका विरोध नहीं करना चाहिए | हमारे देश में संविधान और देश सर्वोपरी है | राजनीतिक दल इससे ऊपर नहीं है |
अतः अपनी अड़ियल मांगों को त्यागते हुए इसका समर्थन करना चाहिए | यह महिलाओं से सबंधित मामला है जो हमारे देश की तरककी में अहम भूमिका निभाती है |
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