भारत की मिट्टियाँ: जलोढ़ मृदा, काली मृदा, लाल मृदा, लैटेराइट मृदा, मरूस्थलीय मृदा, पर्वतीय मृदा, भूसर एवं भूरी मृदा, और हिम क्षेत्र
Table of Content - Indian Soil, alluvial soil, black soil, red soil, laterite soil, Desert Soil, Mountain Soil, Desert Soil in Hindi
मिट्टियाँ भारतीय किसान की अमूल संपदा है। इस पर देश की संपूर्ण कृषि उत्पादन निर्भर करता है।
मृदा के अध्ययन को मृदा विज्ञान (Pedology) कहते हैं।
मृदाजनन (Pedogenesis) एक जटिल तथा निरंतर होने वाली प्रक्रिया है।
मृदा का वर्गीकरण (types of soil in India) - भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (ICAR) ने 1986 में देश में 8 प्रमुख मिट्टियों की पहचान की है।
भारतीय मिट्टी (Indain Soil): alluvial soil, black soil, red soil, laterite soil in Hindi |
भारतीय मृदाएं एवं उनका क्षेत्रफल
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मृदा के प्रकार
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क्षेत्रफल (प्रतिशत
में)
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जलोढ़ मृदा
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43.40
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काली मृदा
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15.20
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लाल मृदा
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18.60
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लैटेराइट मृदा
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3.70
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मरूस्थलीय मृदा
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4.00
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पर्वतीय मृदा
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5.50
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भूसर एवं भूरी मृदा
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हिम क्षेत्र
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1.20
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#01. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil) - जलोढ़ मिट्टियाँ विशाल मैदानों, नर्मदा, ताप्ती, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी की घाटियों एवं
केरल के तटवर्ती भागों में पाई जाती है।
यह मिट्टियाँ नदियों द्वारा अपरदित पदार्थों से निर्मित
हैं। बाढ़ के मैदान की कॉप को स्थानीय रूप से खादर कहा जाता है, एवं पुरानी काँप जो अपरदन
से अप्रभावित होती है बाँगर कहलाती है।
इसमें पोटाश तथा कैल्शियम की प्रचुरता तथा नाइट्रोजन एवं
ह्यूमस की कमी पाई
जाती है।
यह मिट्टी धान, गेहूँ, तिलहन, गन्ना, दलहन आदि की खेती के लिए उत्तम है।
#02. काली मिट्टी (Black Soil) - काली मिट्टी का विकास
महाराष्ट्र, पश्चिमी मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु में दक्कन लावा
के अपक्षय से हुआ है।
इन्हें स्थानीय रूप से रेगुर या काली कपास की मिट्टी तथा
अंतर्राष्ट्रीय रूप से उष्ण कटिबन्धीय चरनोजम कहा जाता है।
ये मिट्टियाँ लौह तत्व, कैल्शियम, पोटाश, एल्युमिनियम तथा मैग्नीशियम कार्बोनेट से समृद्ध होती है, किन्तु इनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा जैविक
पदार्थों की कमी होती है।
इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है, जो गीली होने पर चिपचिपी
एवं सूखने पर इनमें दरारें उत्पन्न हो जाती हैं। क इनमें उर्वरता अधिक होती है।
यह मिट्टी कपास, तूर,
तम्बाकू, मोटे अनाज, अलसी आदि की खेती के लिए
उपयुक्त रहती है।
#03. लाल मिट्टी (Red Soil) - यह मिट्टी तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा एवं झारखण्ड के
व्यापक क्षेत्रों में पाई जाती है।
ये ग्रेनाइट एवं नीस चट्टानों के विखण्डन एवं वियोजन से बनी
है।
इसका लाल रंग, लोहे के ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण है।
इस मिट्टी में लौह तत्व, एल्युमिनियम अधिक होता है किन्तु जीवांश पदार्थ, नाइट्रोजन एवं फास्फोरस
की कमी पाई जाती है।
ये अत्यधिक निक्षालित (leached) मिट्टियाँ है।
यह बाजरे जैसी खाद्यान्न फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
#04. लेटराइट मिट्टी (Laterite Soil) - भारत में यह मिट्टी
मेघालय पठार, पश्चिमी
तथा पूर्वी घाट के क्षेत्रों में पाई जाती है।
इनका स्वरूप ईंट जैसा होता है, भीगने पर ये कोमल एवं
सूखने पर कठोर हो जाती है।
ये मिट्टियाँ लौह एवं एल्यूमिनियम से समृद्ध होती है किन्तु
इनमें नाइट्रोजन, पोटाश, पोटेशियम, चूना एवं जैविक पदार्थ की
कमी होती है।
इनकी उर्वरता कम होती है, किन्तु उर्वरक के प्रयोग से इनमें काजू आदि
फसलें उगाई जा सकती हैं।
#05. पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil) - यह मुख्यतः हिमालय, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, प्रायद्वीपीय भारत की
अन्य पर्वत श्रेणियों पर पाई जाती हैं।
इनमें जीवांश की अधिकता एवं पोटाश, फास्फोरस एवं चूना की कमी
पाई जाती है। यह मिट्टी चाय, कहवा, मसाला तथा फलों के
उत्पादन के लिए उपयुक्त है।
#06. मरूस्थलीय मिट्टी (Desert Soil) - मरूस्थलीय मिट्टी का
विस्तार राजस्थान, सौराष्ट्र, कच्छ, हरियाणा एवं दक्षिणी
पंजाब में है।
ये बजरी युक्त मिट्टी है जिनमें नाइट्रोजन एवं जैविक पदार्थ
की कमी एवं कैल्शियम कार्बोनेट की भिन्न मात्रा पाई जाती है।
इनमें केवल मिलेट, बाजरा, ज्वार तथा मोटे अनाज ही उगाए जाते हैं।
#07. पीट एवं दलदली मृदा (Peaty and Marshy Soil) - यह मृदा वर्षा ऋतु में
जलमग्न होने वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।
ये मिट्टियाँ काली, भारी एवं अत्यधिक अम्लीय होती हैं तथा धान की खेती के लिए
उपयुक्त होती हैं। ये मिट्टियाँ केरल में मिलती हैं।
#08. लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी
(Saline and Alkaline
Soil)- ये मिट्टियाँ पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र के शुष्क भागों में पाई जाती
है।
ये रेह, कल्लर, ऊसर,
राथड़, थूर, चोपन आदि स्थानीय नामों
से जानी जाती है।
इनमें चावल, गेहूँ, कपास, गन्ना, तंबाकू आदि फसलें उगाई जाती हैं।
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